Shri Hanuman Bahuk in Hindi – श्री हनुमान बाहुक हिंदी में

हनुमान बाहुक एक प्रार्थना है जिसे प्रसिद्ध कवि तुलसीदास जी ने लिखा है। यह भगवान हनुमान को समर्पित है और माना जाता है कि यह प्रार्थना बीमारियों से मुक्ति दिलाने में सहायक होती है। जहाँ हनुमान चालीसा में भगवान हनुमान की शक्ति और पराक्रम का वर्णन है, वहीं हनुमान बाहुक विशेष रूप से तब की जाती है जब कोई व्यक्ति दर्द या बीमारी से पीड़ित होता है। इस प्रार्थना में 40 श्लोक हैं, और ऐसा विश्वास है कि इसका पाठ करने या इसका जाप करने से व्यक्ति को राहत और समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है। यह प्रार्थना आशा और विश्वास से भरी हुई है और इसे लोग स्वास्थ्य और अच्छे जीवन के लिए बहुत प्रभावी मानते हैं।

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Hanuman Bahuk Hindi – हनुमान बाहुक हिंदी

॥ छप्पय ॥

सिंधु तरन, सिय-सोच हरन,रबि बाल बरन तनु।

भुज बिसाल,मूरति कराल कालहु को काल जनु॥

गहन-दहन-निरदहन लंक निःसंक,बंक-भुव।

जातुधान-बलवान,मान-मद-दवन पवनसुव॥

कह तुलसिदास सेवत सुलभ,सेवक हित सन्तत निकट।

गुन गनत, नमत, सुमिरत जपत,समन सकल-संकट-विकट॥1॥

स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रवि,तरुन तेज घन।

उर विसाल भुज दण्ड,चण्ड नख-वज्रतन॥

पिंग नयन, भृकुटी कराल,रसना दसनानन।

कपिस केस करकस लंगूर,खल-दल-बल-भानन॥

कह तुलसिदास बस जासु उर,मारुतसुत मूरति विकट।

संताप पाप तेहि पुरुष पहि,सपनेहुँ नहिं आवत निकट॥2॥

॥ झूलना ॥

पञ्चमुख-छःमुख भृगु मुख्य भट असुर सुर,सर्व सरि समर समरत्थ सूरो।

बांकुरो बीर बिरुदैत बिरुदावली,बेद बंदी बदत पैजपूरो॥

जासु गुनगाथ रघुनाथ कह जासुबल,बिपुल जल भरित जग जलधि झूरो।

दुवन दल दमन को कौन तुलसीस है,पवन को पूत रजपूत रुरो॥3॥

॥ घनाक्षरी ॥

भानुसों पढ़न हनुमान गए भानुमन,अनुमानि सिसु केलि कियो फेर फारसो।

पाछिले पगनि गम गगन मगन मन,क्रम को न भ्रम कपि बालक बिहार सो॥

कौतुक बिलोकि लोकपाल हरिहर विधि,लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खबार सो।

बल कैंधो बीर रस धीरज कै, साहस कै,तुलसी सरीर धरे सबनि सार सो॥4॥

भारत में पारथ के रथ केथू कपिराज,गाज्यो सुनि कुरुराज दल हल बल भो।

कह्यो द्रोन भीषम समीर सुत महाबीर,बीर-रस-बारि-निधि जाको बल जल भो॥

बानर सुभाय बाल केलि भूमि भानु लागि,फलँग फलाँग हूतें घाटि नभ तल भो।

नाई-नाई-माथ जोरि-जोरि हाथ जोधा जो हैं,हनुमान देखे जगजीवन को फल भो॥5॥

गो-पद पयोधि करि, होलिका ज्यों लाई लंक,निपट निःसंक पर पुर गल बल भो।

द्रोन सो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर,कंदुक ज्यों कपि खेल बेल कैसो फल भो॥

संकट समाज असमंजस भो राम राज,काज जुग पूगनि को करतल पल भो।

साहसी समत्थ तुलसी को नाई जा की बाँह,लोक पाल पालन को फिर थिर थल भो॥6॥

कमठ की पीठि जाके गोडनि की गाड़ऐं मानो,नाप के भाजन भरि जल निधि जल भो।

जातुधान दावन परावन को दुर्ग भयो,महा मीन बास तिमि तोमनि को थल भो॥

कुम्भकरन रावन पयोद नाद ईधन को,तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो।

भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान,सारिखो त्रिकाल न त्रिलोक महाबल भो॥7॥

दूत राम राय को सपूत पूत पौनको तू,अंजनी को नन्दन प्रताप भूरि भानु सो।

सीय-सोच-समन, दुरित दोष दमन,सरन आये अवन लखन प्रिय प्राण सो॥

दसमुख दुसह दरिद्र दरिबे को भयो,प्रकट तिलोक ओक तुलसी निधान सो।

ज्ञान गुनवान बलवान सेवा सावधान,साहेब सुजान उर आनु हनुमान सो॥8॥

दवन दुवन दल भुवन बिदित बल,बेद जस गावत बिबुध बंदी छोर को।

पाप ताप तिमिर तुहिन निघटन पटु,सेवक सरोरुह सुखद भानु भोर को॥

लोक परलोक तें बिसोक सपने न सोक,तुलसी के हिये है भरोसो एक ओर को।

राम को दुलारो दास बामदेव को निवास,नाम कलि कामतरु केसरी किसोर को॥9॥

महाबल सीम महा भीम महाबान इत,महाबीर बिदित बरायो रघुबीर को।

कुलिस कठोर तनु जोर परै रोर रन,करुना कलित मन धारमिक धीर को॥

दुर्जन को कालसो कराल पाल सज्जन को,सुमिरे हरन हार तुलसी की पीर को।

सीय-सुख-दायक दुलारो रघुनायक को,सेवक सहायक है साहसी समीर को॥10॥

रचिबे को बिधि जैसे, पालिबे को हरि हर,मीच मारिबे को, ज्याईबे को सुधापान भो।

धरिबे को धरनि, तरनि तम दलिबे को,सोखिबे कृसानु पोषिबे को हिम भानु भो॥

खल दुःख दोषिबे को, जन परितोषिबे को,माँगिबो मलीनता को मोदक दुदान भो।

आरत की आरति निवारिबे को तिहुँ पुर,तुलसी को साहेब हठीलो हनुमान भो॥11॥

सेवक स्योकाई जानि जानकीस मानै कानि,सानुकूल सूलपानि नवै नाथ नाँक को।

देवी देव दानव दयावने ह्वै जोरैं हाथ,बापुरे बराक कहा और राजा राँक को॥

जागत सोवत बैठे बागत बिनोद मोद,ताके जो अनर्थ सो समर्थ एक आँक को।

सब दिन रुरो परै पूरो जहाँ तहाँ ताहि,जाके है भरोसो हिये हनुमान हाँक को॥12॥

सानुग सगौरि सानुकूल सूलपानि ताहि,लोकपाल सकल लखन राम जानकी।

लोक परलोक को बिसोक सो तिलोक ताहि,तुलसी तमाइ कहा काहू बीर आनकी॥

केसरी किसोर बन्दीछोर के नेवाजे सब,कीरति बिमल कपि करुनानिधान की।

बालक ज्यों पालि हैं कृपालु मुनि सिद्धता को,जाके हिये हुलसति हाँक हनुमान की॥13॥

करुनानिधान बलबुद्धि के निधान हौ,महिमा निधान गुनज्ञान के निधान हौ।

बाम देव रुप भूप राम के सनेही, नाम,लेत देत अर्थ धर्म काम निरबान हौ॥

आपने प्रभाव सीताराम के सुभाव सील,लोक बेद बिधि के बिदूष हनुमान हौ।

मन की बचन की करम की तिहूँ प्रकार,तुलसी तिहारो तुम साहेब सुजान हौ॥14॥

मन को अगम तन सुगम किये कपीस,काज महाराज के समाज साज साजे हैं।

देवबंदी छोर रनरोर केसरी किसोर,जुग जुग जग तेरे बिरद बिराजे हैं॥

बीर बरजोर घटि जोर तुलसी की ओर,सुनि सकुचाने साधु खल गन गाजे हैं।

बिगरी सँवार अंजनी कुमार कीजे मोहिं,जैसे होत आये हनुमान के निवाजे हैं॥15॥

॥ सवैया ॥

जान सिरोमनि हो हनुमान,सदा जन के मन बास तिहारो।

ढ़आरो बिगारो मैं काको कहा,केहि कारन खीझत हौं तो तिहारो॥

साहेब सेवक नाते तो हातो,कियो सो तहां तुलसी को न चारो।

दोष सुनाये तैं आगेहुँ को,होशियार ह्वैं हों मन तो हिय हारो॥16॥

तेरे थपै उथपै न महेस,थपै थिर को कपि जे उर घाले।

तेरे निबाजे गरीब निबाज,बिराजत बैरिन के उर साले॥

संकट सोच सबै तुलसी,लिये नाम फटै मकरी के से जाले।

बूढ भये बलि मेरिहिं बार,कि हारि परे बहुतै नत पाले॥17॥

सिंधु तरे बड़ए बीर दले खल,जारे हैं लंक से बंक मवासे।

तैं रनि केहरि केहरि के,बिदले अरि कुंजर छैल छवासे॥

तोसो समत्थ सुसाहेब सेई सहै,तुलसी दुख दोष दवा से।

बानरबाज ! बढ़ए खल खेचर,लीजत क्यों न लपेटि लवासे॥18॥

अच्छ विमर्दन कानन भानि,दसानन आनन भा न निहारो।

बारिदनाद अकंपन कुंभकरन से,कुञ्जर केहरि वारो॥

राम प्रताप हुतासन, कच्छ,विपच्छ, समीर समीर दुलारो।

पाप ते साप ते ताप तिहूँ तें,सदा तुलसी कह सो रखवारो॥19॥

॥ घनाक्षरी ॥

जानत जहान हनुमान को निवाज्यो जन,मन अनुमानि बलि बोल न बिसारिये।

सेवा जोग तुलसी कबहुँ कहा चूक परी,साहेब सुभाव कपि साहिबी संभारिये॥

अपराधी जानि कीजै सासति सहस भान्ति,मोदक मरै जो ताहि माहुर न मारिये।

साहसी समीर के दुलारे रघुबीर जू के,बाँह पीर महाबीर बेगि ही निवारिये॥20॥

बालक बिलोकि, बलि बारें तें आपनो कियो,दीनबन्धु दया कीन्हीं निरुपाधि न्यारिये।

रावरो भरोसो तुलसी के, रावरोई बल,आस रावरीयै दास रावरो विचारिये॥

बड़ओ बिकराल कलि काको न बिहाल कियो,माथे पगु बलि को निहारि सो निबारिये।

केसरी किसोर रनरोर बरजोर बीर,बाँह पीर राहु मातु ज्यौं पछारि मारिये॥21॥

उथपे थपनथिर थपे उथपनहार,केसरी कुमार बल आपनो संबारिये।

राम के गुलामनि को काम तरु रामदूत,मोसे दीन दूबरे को तकिया तिहारिये॥

साहेब समर्थ तो सों तुलसी के माथे पर,सोऊ अपराध बिनु बीर, बाँधि मारिये।

पोखरी बिसाल बाँहु, बलि, बारिचर पीर,मकरी ज्यों पकरि के बदन बिदारिये॥22॥

राम को सनेह, राम साहस लखन सिय,राम की भगति, सोच संकट निवारिये।

मुद मरकट रोग बारिनिधि हेरि हारे,जीव जामवंत को भरोसो तेरो भारिये॥

कूदिये कृपाल तुलसी सुप्रेम पब्बयतें,सुथल सुबेल भालू बैठि कै विचारिये।

महाबीर बाँकुरे बराकी बाँह पीर क्यों न,लंकिनी ज्यों लात घात ही मरोरि मारिये॥23॥

लोक परलोकहुँ तिलोक न विलोकियत,तोसे समरथ चष चारिहूँ निहारिये।

कर्म, काल, लोकपाल, अग जग जीवजाल,नाथ हाथ सब निज महिमा बिचारिये॥

खास दास रावरो, निवास तेरो तासु उर,तुलसी सो, देव दुखी देखिअत भारिये।

बात तरुमूल बाँहूसूल कपिकच्छु बेलि,उपजी सकेलि कपि केलि ही उखारिये॥24॥

करम कराल कंस भूमिपाल के भरोसे,बकी बक भगिनी काहू तें कहा डरैगी।

बड़ई बिकराल बाल घातिनी न जात कहि,बाँहू बल बालक छबीले छोटे छरैगी॥

आई है बनाई बेष आप ही बिचारि देख,पाप जाय सब को गुनी के पाले परैगी।

पूतना पिसाचिनी ज्यौं कपि कान्ह तुलसी की,बाँह पीर महाबीर तेरे मारे मरैगी॥25॥

भाल की कि काल की कि रोष की त्रिदोष की है,बेदन बिषम पाप ताप छल छाँह की।

करमन कूट की कि जन्त्र मन्त्र बूट की,पराहि जाहि पापिनी मलीन मन माँह की॥

पैहहि सजाय, नत कहत बजाय तोहि,बाबरी न होहि बानि जानि कपि नाँह की।

आन हनुमान की दुहाई बलवान की,सपथ महाबीर की जो रहै पीर बाँह की॥26॥

सिंहिका सँहारि बल सुरसा सुधारि छल,लंकिनी पछारि मारि बाटिका उजारी है।

लंक परजारि मकरी बिदारि बार बार,जातुधान धारि धूरि धानी करि डारी है॥

तोरि जमकातरि मंदोदरी कठोरि आनी,रावन की रानी मेघनाद महतारी है।

भीर बाँह पीर की निपट राखी महाबीर,कौन के सकोच तुलसी के सोच भारी है॥27॥

तेरो बालि केलि बीर सुनि सहमत धीर,भूलत सरीर सुधि सक्र रवि राहु की।

तेरी बाँह बसत बिसोक लोक पाल सब,तेरो नाम लेत रहैं आरति न काहु की॥

साम दाम भेद विधि बेदहू लबेद सिधि,हाथ कपिनाथ ही के चोटी चोर साहु की।

आलस अनख परिहास कै सिखावन है,एते दिन रही पीर तुलसी के बाहु की॥28॥

टूकनि को घर घर डोलत कँगाल बोलि,बाल ज्यों कृपाल नत पाल पालि पोसो है।

कीन्ही है सँभार सार अँजनी कुमार बीर,आपनो बिसारि हैं न मेरेहू भरोसो है॥

इतनो परेखो सब भान्ति समरथ आजु,कपिराज सांची कहौं को तिलोक तोसो है।

सासति सहत दास कीजे पेखि परिहास,चीरी को मरन खेल बालकनि कोसो है॥29॥

आपने ही पाप तें त्रिपात तें कि साप तें,बढ़ई है बाँह बेदन कही न सहि जाति है।

औषध अनेक जन्त्र मन्त्र टोटकादि किये,बादि भये देवता मनाये अधीकाति है॥

करतार, भरतार, हरतार, कर्म काल,को है जगजाल जो न मानत इताति है।

चेरो तेरो तुलसी तू मेरो कह्यो राम दूत,ढील तेरी बीर मोहि पीर तें पिराति है॥30॥

दूत राम राय को, सपूत पूत वाय को,समत्व हाथ पाय को सहाय असहाय को।

बाँकी बिरदावली बिदित बेद गाइयत,रावन सो भट भयो मुठिका के धाय को॥

एते बडे साहेब समर्थ को निवाजो आज,सीदत सुसेवक बचन मन काय को।

थोरी बाँह पीर की बड़ई गलानि तुलसी को,कौन पाप कोप, लोप प्रकट प्रभाय को॥31॥

देवी देव दनुज मनुज मुनि सिद्ध नाग,छोटे बड़ए जीव जेते चेतन अचेत हैं।

पूतना पिसाची जातुधानी जातुधान बाग,राम दूत की रजाई माथे मानि लेत हैं॥

घोर जन्त्र मन्त्र कूट कपट कुरोग जोग,हनुमान आन सुनि छाड़त निकेत हैं।

क्रोध कीजे कर्म को प्रबोध कीजे तुलसी को,सोध कीजे तिनको जो दोष दुख देत हैं॥32॥

तेरे बल बानर जिताये रन रावन सों,तेरे घाले जातुधान भये घर घर के।

तेरे बल राम राज किये सब सुर काज,सकल समाज साज साजे रघुबर के॥

तेरो गुनगान सुनि गीरबान पुलकत,सजल बिलोचन बिरंचि हरिहर के।

तुलसी के माथे पर हाथ फेरो कीस नाथ,देखिये न दास दुखी तोसो कनिगर के॥33॥

पालो तेरे टूक को परेहू चूक मूकिये न,कूर कौड़ई दूको हौं आपनी ओर हेरिये।

भोरानाथ भोरे ही सरोष होत थोरे दोष,पोषि तोषि थापि आपनो न अव डेरिये॥

अँबु तू हौं अँबु चूर, अँबु तू हौं डिंभ सो न,बूझिये बिलंब अवलंब मेरे तेरिये।

बालक बिकल जानि पाहि प्रेम पहिचानि,तुलसी की बाँह पर लामी लूम फेरिये॥34॥

घेरि लियो रोगनि, कुजोगनि, कुलोगनि ज्यौं,बासर जलद घन घटा धुकि धाई है।

बरसत बारि पीर जारिये जवासे जस,रोष बिनु दोष धूम मूल मलिनाई है॥

करुनानिधान हनुमान महा बलवान,हेरि हँसि हाँकि फूंकि फौंजै ते उड़आई है।

खाये हुतो तुलसी कुरोग राढ़ राकसनि,केसरी किसोर राखे बीर बरिआई है॥35॥

॥ सवैया ॥

राम गुलाम तु ही हनुमान,गोसाँई सुसाँई सदा अनुकूलो।

पाल्यो हौं बाल ज्यों आखर दू,पितु मातु सों मंगल मोद समूलो॥

बाँह की बेदन बाँह पगार,पुकारत आरत आनँद भूलो।

श्री रघुबीर निवारिये पीर,रहौं दरबार परो लटि लूलो॥36॥

॥ घनाक्षरी ॥

काल की करालता करम कठिनाई कीधौ,पाप के प्रभाव की सुभाय बाय बावरे।

बेदन कुभाँति सो सही न जाति राति दिन,सोई बाँह गही जो गही समीर डाबरे॥

लायो तरु तुलसी तिहारो सो निहारि बारि,सींचिये मलीन भो तयो है तिहुँ तावरे।

भूतनि की आपनी पराये की कृपा निधान,जानियत सबही की रीति राम रावरे॥37॥

पाँय पीर पेट पीर बाँह पीर मुंह पीर,जर जर सकल पीर मई है।

देव भूत पितर करम खल काल ग्रह,मोहि पर दवरि दमानक सी दई है॥

हौं तो बिनु मोल के बिकानो बलि बारे हीतें,ओट राम नाम की ललाट लिखि लई है।

कुँभज के किंकर बिकल बूढ़ए गोखुरनि,हाय राम राय ऐसी हाल कहूँ भई है॥38॥

बाहुक सुबाहु नीच लीचर मरीच मिलि,मुँह पीर केतुजा कुरोग जातुधान है।

राम नाम जप जाग कियो चहों सानुराग,काल कैसे दूत भूत कहा मेरे मान है॥

सुमिरे सहाय राम लखन आखर दौऊ,जिनके समूह साके जागत जहान है।

तुलसी सँभारि ताडका सँहारि भारि भट,बेधे बरगद से बनाई बानवान है॥39॥

बालपने सूधे मन राम सनमुख भयो,राम नाम लेत माँगि खात टूक टाक हौं।

परयो लोक रीति में पुनीत प्रीति राम राय,मोह बस बैठो तोरि तरकि तराक हौं॥

खोटे खोटे आचरन आचरत अपनायो,अंजनी कुमार सोध्यो रामपानि पाक हौं।

तुलसी गुसाँई भयो भोंडे दिन भूल गयो,ताको फल पावत निदान परिपाक हौं॥40॥

असन बसन हीन बिषम बिषाद लीन,देखि दीन दूबरो करै न हाय हाय को।

तुलसी अनाथ सो सनाथ रघुनाथ कियो,दियो फल सील सिंधु आपने सुभाय को॥

नीच यहि बीच पति पाइ भरु हाईगो,बिहाइ प्रभु भजन बचन मन काय को।

ता तें तनु पेषियत घोर बरतोर मिस,फूटि फूटि निकसत लोन राम राय को॥41॥

जीओ जग जानकीजीवन को कहाइ जन,मरिबे को बारानसी बारि सुरसरि को।

तुलसी के दोहूँ हाथ मोदक हैं ऐसे ठाँऊ,जाके जिये मुये सोच करिहैं न लरि को॥

मोको झूँटो साँचो लोग राम कौ कहत सब,मेरे मन मान है न हर को न हरि को।

भारी पीर दुसह सरीर तें बिहाल होत,सोऊ रघुबीर बिनु सकै दूर करि को॥42॥

सीतापति साहेब सहाय हनुमान नित,हित उपदेश को महेस मानो गुरु कै।

मानस बचन काय सरन तिहारे पाँय,तुम्हरे भरोसे सुर मैं न जाने सुर कै॥

ब्याधि भूत जनित उपाधि काहु खल की,समाधि की जै तुलसी को जानि जन फुर कै।

कपिनाथ रघुनाथ भोलानाथ भूतनाथ,रोग सिंधु क्यों न डारियत गाय खुर कै॥43॥

कहों हनुमान सों सुजान राम राय सों,कृपानिधान संकर सों सावधान सुनिये।

हरष विषाद राग रोष गुन दोष मई,बिरची बिरञ्ची सब देखियत दुनिये॥

माया जीव काल के करम के सुभाय के,करैया राम बेद कहें साँची मन गुनिये।

तुम्ह तें कहा न होय हा हा सो बुझैये मोहिं,हौं हूँ रहों मौनही वयो सो जानि लुनिये॥44॥

॥ इति श्रीमद्गोस्वामीतुलसीदासकृत हनुमानबाहुक ॥

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Frequently Asked Questions (FAQs)

हनुमान बाहुक क्या है?

हनुमान बाहुक एक प्रार्थना है जिसे महान कवि तुलसीदास ने लिखा है और यह भगवान हनुमान को समर्पित है। इसमें 40 श्लोक हैं, और इसका पाठ मुख्य रूप से बीमारियों से मुक्ति और दर्द से राहत के लिए किया जाता है।

हनुमान बाहुक का पाठ कब करना चाहिए?

हनुमान बहुक का पाठ सुबह या शाम के समय करना सबसे अच्छा माना जाता है। कुछ लोग मानते हैं कि 12 बजे से 4 बजे तक हनुमान बहुक का पाठ नहीं करना चाहिए, क्योंकि इस समय को भगवान हनुमान का विश्राम काल माना जाता है। सुबह का समय दिन की शुरुआत के लिए शुभ होता है, जबकि शाम का समय मानसिक शांति और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उपयुक्त है। आप इसे जब भी समय निकाल सकें, पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ पढ़ सकते हैं।

क्या महिलाएं हनुमान बाहुक का पाठ कर सकती हैं?

हाँ, महिलाएं निश्चित रूप से हनुमान बाहुक का पाठ कर सकती हैं। इस प्रार्थना में लिंग के आधार पर कोई प्रतिबंध नहीं है। भगवान हनुमान का आशीर्वाद सभी के लिए है, और भारत में कई महिलाएं इसे स्वास्थ्य, शक्ति और सुरक्षा के लिए पढ़ती हैं। यह प्रार्थना उन सभी के लिए है जो उनके दिव्य सहारे की तलाश करते हैं।

हनुमान बाहुक का पाठ करने में कितना समय लगता है?

हनुमान बाहुक में 40 श्लोक होते हैं, और इसे पूरा पढ़ने में लगभग 10-15 मिनट का समय लगता है, यह आपके पाठ की गति पर निर्भर करता है। आप इसे छोटे हिस्सों में भी बांट सकते हैं और पूरे दिन में इसे पढ़ सकते हैं।

हनुमान बाहुक को कितनी बार पढ़ना चाहिए?

हनुमान बहुक को पढ़ने के लिए कोई निश्चित संख्या नहीं है, लेकिन इसे सामान्यतः 108 बार या 108 के गुणज में पढ़ना शुभ माना जाता है। कई लोग इसे प्रतिदिन 3, 7, या 11 बार भी पढ़ते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसे श्रद्धा और ध्यान के साथ पढ़ा जाए, क्योंकि माना जाता है कि जब इसे शुद्ध नीयत से पढ़ा जाता है, तो यह और अधिक आशीर्वाद और उपचार लेकर आता है।

हनुमान बाहुक अन्य हनुमान प्रार्थनाओं से अलग कैसे है?

हनुमान बाहुक विशेष है क्योंकि यह केवल हनुमान जी की शक्ति की सराहना करने के बारे में नहीं है, बल्कि यह उनके मदद की प्रार्थना है जब आप किसी संकट में होते हैं। चाहे आप बीमारी, दर्द या कठिन समय से जूझ रहे हों, यह प्रार्थना विशेष रूप से राहत और उपचार के लिए बनाई गई है। यह शारीरिक और मानसिक समर्थन प्राप्त करने पर केंद्रित है, जिससे यह उन लोगों के लिए एक विशेष प्रार्थना बन जाती है जो कठिन समय में सांत्वना और शक्ति चाहते हैं।

क्या हनुमान बहुक का पाठ करते समय उसका अर्थ समझना जरूरी है?

हनुमान बहुक का पाठ करते समय हर शब्द का अर्थ समझना जरूरी नहीं है, लेकिन अगर आप उसका अर्थ समझते हैं, तो यह और भी शक्तिशाली हो सकता है। जब आप हर शेर का मतलब जानते हैं, तो आप भगवान हनुमान की ऊर्जा से और भी गहरे जुड़ते हैं। फिर भी, यदि आपको अर्थ नहीं पता, तो भी पूरे विश्वास और भक्ति के साथ हनुमान बहुक का पाठ करने से उनके आशीर्वाद, सुरक्षा और स्वास्थ्य लाभ मिल सकते हैं। तो, चाहे आप अर्थ समझें या न समझें, सबसे महत्वपूर्ण बात है कि आप पूरी श्रद्धा और प्रेम से पाठ करें।

बजरंग बली का पंचमुखी रूप क्यों है?

बजरंग बली का पंचमुखी रूप उनके पांच चेहरों के साथ आता है, जो प्रत्येक दिशा में विशेष शक्तियों को दर्शाता है:
नृसिंह: सुरक्षा और शक्ति का प्रतीक।
गरुड़: शक्ति और संजीवनी का प्रतीक।
वराह: पृथ्वी की रक्षा के लिए।
हयग्रीव: ज्ञान और शिक्षा का प्रतीक।
हनुमान: भक्ति और सेवा के लिए, जो उन्हें मुख्य रूप से दर्शाता है।

भगवान बजरंग बली को ‘चिरंजीवी’ क्यों कहा जाता है?

भगवान बजरंग बली को ‘चिरंजीवी’ (अमर) कहा जाता है क्योंकि उन्होंने भगवान श्रीराम से वादा किया था कि जब तक पृथ्वी पर राम का नाम लिया जाएगा, तब तक वे जीवित रहेंगे। यह एक प्रसिद्ध मान्यता है कि बजरंग बली ने अपने अमर रहने का वचन श्रीराम से लिया था ताकि वे हमेशा अपने भक्तों की रक्षा कर सकें।
कहा जाता है कि भगवान राम के समय से लेकर आज तक, बजरंग बली अपने भक्तों के बीच मौजूद हैं, और जब तक राम का नाम लिया जाता रहेगा, बजरंग बली का अस्तित्व भी बने रहेगा। इस कारण बजरंग बली को चिरंजीवी कहा जाता है, यानी वे अमर हैं और उनके साथ भक्तों की हमेशा सहायता करने की शक्ति बनी रहती है। यह भी माना जाता है कि बजरंग बली ने अपनी शक्ति और भक्ति के कारण मृत्यु से भी पार पा लिया, और उन्होंने कभी भी मृत्यु को स्वीकार नहीं किया।

हनुमान चालीसा में वर्णित “अष्ट सिद्धियां” और “नव निधियां” क्या हैं?

हनुमान चालीसा में अष्ट सिद्धियां (आठ दिव्य शक्तियाँ) और नव निधियां (नौ खजाने) बजरंग बली की अद्वितीय शक्तियों और उन आशीर्वादों का प्रतीक हैं, जो वह अपने भक्तों को प्रदान करते हैं। ये दोनों बजरंग बली की महिमा और उनके भक्तों के लिए उनके दिव्य वरदानों को दर्शाते हैं।
अष्ट सिद्धियां (आठ दिव्य शक्तियाँ):
अष्ट सिद्धियां बजरंग बली की आठ अलौकिक शक्तियाँ हैं, जो उनकी अपार क्षमता और दिव्य प्रकृति को दर्शाती हैं:
आनिमा – किसी भी वस्तु को अनंत रूप में छोटा करने की शक्ति।
महिमा – किसी भी वस्तु को अनंत रूप में बड़ा करने की शक्ति।
गरिमा – किसी भी वस्तु को अत्यधिक भारी बनाने की शक्ति।
लघिमा – अत्यधिक हल्का होने की शक्ति, यानी वजनहीन होने की क्षमता।
प्राप्ति – किसी भी वस्तु या शक्ति को कहीं से भी प्राप्त करने की क्षमता।
प्राकाम्य – अपनी किसी भी इच्छा को पूरा करने की शक्ति।
ईशिता – सभी प्राणियों और तत्वों पर नियंत्रण करने की शक्ति।
वशीकरण – दूसरों को वश में करने की शक्ति।
नव निधियां (नौ खजाने):
नव निधियां बजरंग बली के नौ दिव्य खजाने हैं, जो भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि का प्रतीक हैं। ये नौ खजाने भक्तों को जीवन में समृद्धि और सुख-शांति देने का आशीर्वाद देते हैं:
पद्म – समृद्धि का प्रतीक, जो जीवन में ऐश्वर्य लाता है।
महापद्म – उच्चतम समृद्धि और विशेष खजाना।
शंख – विजय और समृद्धि का प्रतीक।
मकर – एक पौराणिक जलजन्तु, जो शक्ति और संजीवनी का प्रतीक है।
कच्छप – कछुआ, जो स्थिरता, धैर्य और बल का प्रतीक है।
नील – एक कीमती रत्न, जो आध्यात्मिक मूल्य और पवित्रता का प्रतीक है।
कुण्डल – कान की बालियां, जो आशीर्वाद और दिव्यता का प्रतीक होती हैं।
केसर – केसर, जो पवित्रता और आध्यात्मिकता का प्रतीक है।
कुण्डलिनी – आध्यात्मिक जागृति का प्रतीक, जो आत्मज्ञान और ऊर्जा का स्रोत है।
अष्ट सिद्धियां और नव निधियां बजरंग बली की दिव्य शक्तियों और उनके भक्तों को प्राप्त होने वाले आशीर्वादों को प्रदर्शित करती हैं, जिससे भक्तों को जीवन में समृद्धि, सुख, और संकटों से मुक्ति मिलती है।

क्या हनुमान जी को ब्रह्मास्त्र से बांधा गया था?

हाँ, हनुमान जी को ब्रह्मास्त्र से बांधने का एक अनोखा प्रसंग है। यह घटना उस समय की है जब हनुमान जी माता सीता की खोज में लंका पहुंचे थे। लंका में प्रवेश करते ही उन्होंने अशोक वाटिका में बहुत तबाही मचाई और रावण के सैनिकों को हराया। जब रावण को यह खबर मिली, तो उसने मेघनाद को हनुमान को पकड़ने का आदेश दिया।

मेघनाद ने कई शक्तिशाली अस्त्रों से हनुमान जी पर हमला किया, लेकिन वे सभी व्यर्थ साबित हुए। अंत में, मेघनाद ने ब्रह्मास्त्र का उपयोग किया। हालांकि हनुमान जी ब्रह्मास्त्र की शक्ति को सहन कर सकते थे, लेकिन उन्होंने स्वयं को जानबूझकर ब्रह्मास्त्र से बंधने दिया। ऐसा इसलिए क्योंकि वे देवताओं और उनके अस्त्रों का सम्मान करना चाहते थे।

यह घटना यह दिखाती है कि हनुमान जी सिर्फ शक्ति और साहस के प्रतीक नहीं थे, बल्कि वे विनम्रता और धर्म का पालन करने वाले भी थे। जब उन्हें रावण के दरबार में लाया गया, तो उन्होंने अपनी बुद्धि और चातुर्य से रावण के अहंकार को चुनौती दी।

क्या हनुमान जी का कोई पुत्र था?

son of lord hanuman makardhwaj

हाँ, हनुमान जी का एक पुत्र था जिसका नाम मकरध्वज था। मकरध्वज का जन्म एक चमत्कारिक घटना से हुआ था। जब हनुमान जी लंका जलाने के बाद अपनी जलती हुई पूंछ को समुद्र में बुझा रहे थे, तब उनके शरीर से पसीने की एक बूंद समुद्र में गिर गई। उस पसीने की बूंद को एक मछली (मकर) ने निगल लिया। बाद में, उसी मछली के गर्भ से मकरध्वज का जन्म हुआ।

मकरध्वज को पाताल लोक में अहिरावण, जो एक मायावी राक्षस और लंका का सहयोगी था, ने पाला। अहिरावण ने मकरध्वज को पाताल लोक का द्वारपाल नियुक्त किया। जब हनुमान जी श्रीराम और लक्ष्मण को अहिरावण से बचाने पाताल लोक पहुंचे, तब उनका सामना मकरध्वज से हुआ। मकरध्वज ने अपने कर्तव्य का पालन करते हुए हनुमान जी से लड़ाई की, क्योंकि उसे अपने राजा का आदेश मानना था। लड़ाई के बाद मकरध्वज ने अपनी पहचान बताई और कहा कि वह हनुमान जी का पुत्र है।

हनुमान जी ने उसकी वीरता और निष्ठा से प्रभावित होकर उसे पाताल लोक का राजा बना दिया, ताकि वह धर्म के अनुसार शासन कर सके। मकरध्वज की कहानी रामायण के मुख्य संस्करणों में नहीं मिलती, लेकिन यह पौराणिक कथाओं और स्थानीय लोककथाओं में महत्वपूर्ण स्थान रखती है।

Conclusion

हनुमान बाहुक एक ऐसी प्रार्थना है जिसका उपयोग कई लोग भगवान हनुमान से सहायता मांगने के लिए करते हैं जब वे बीमार होते हैं या किसी पीड़ा में होते हैं। इस प्रार्थना को श्रद्धा और विश्वास के साथ करने से लोग बेहतर महसूस करने और स्वस्थ होने की आशा रखते हैं। यह प्रार्थना विश्वास और आशा से भरी हुई है, और इसे कई लोग शांति और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए प्रभावशाली मानते हैं। भगवान हनुमान अपनी शक्ति और करुणा के लिए प्रसिद्ध हैं, और इस प्रार्थना का पाठ करने से भक्त उनके और निकट अनुभव करते हैं। चाहे आप शारीरिक बीमारी से जूझ रहे हों या मानसिक संघर्ष का सामना कर रहे हों, हनुमान बाहुक आपको आराम और राहत देने में सहायक हो सकता है, कठिन समय में शांति और शक्ति पाने में मदद करता है।

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